मैंने स्वयं अपने अनुभव से जाना है, कि अच्छे-अच्छे पढ़े लिखे लोग तक साधारण कानून से अनभिज्ञ हैं । इसमें लोगो की गलती कम, बल्कि कानूनविदों की गलती अधिक जान पड़ती है. जिन्होंने आम जनता को कभी कानून से रू-ब-रू कराने का प्रयास नहीं किया । सभी कानूनविद हमेशा कानून की शब्दावली को बिना छुए. कानून को उसी घिसी पिटी कानूनी भाषा में लिखते रहे, जिसके कारण कानूनी ज्ञान एवं कानूनी तकनीकि पूर्ण दाव-पेंच वकीलों तक ही सीमित रहे। मैने 1500 लोगों से पूछताछ के सर्वे मे पाया, कि अधिकतर लोगो ने अपने जीवन में कभी न कभी कानून संबंधित पुस्तक को अवश्य निहारा है, एवं पढ़ने व समझने का प्रयास किया है, परन्तु उनमे से पढ़ने वाले अधिकतर लोग या तो उसे समझ नहीं पाये, या कुछ पाठक पढ़कर बोर हुए। इस सबका कारण है कानूनी शब्दावली', जिसे कानून से संबंधित लोग ही समझ सकते हैं। अभी तक हमारे देश में कानून की अच्छी पुस्तकें या तो अंग्रेजी भाषा में लिखी हुई हैं, या कानूनी शब्दावली की चासनी में डुबोकर भारत की अन्य भाषाओं मे उपलब्ध हैं। किसी प्यासे आदमी को खारे पानी के समुद्र के पास छोड दिया जाये, तो वह प्यास में तड़प-तड़प कर मर जायेगा, जबकि पीने योग्य मात्र एक गिलास पानी उसकी जान बचा सकता है।यही कानून के क्षेत्र मे है। कानून के विषय पर हज़ारो पुस्तकें हैं,परन्तु एक 'ले मैन'(Layman) के लिए उन्हें समझना मुश्किल है। इसी से प्रेरित होकर मैंने आम आदमी की बोलचाल की भाषा में अपराधिक कानून के ऊपर पुस्तक 'Kanoon Coverage Book Series' लिखने का प्रयास किया है।